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16.7.07

मिलन

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


हम मिलते रहे,
रोज मिलते रहे,
तुमने अपने चहरे के दाग,
घूँघट में छुपा रखे थे,
मैंने भी सब जख्म अपने ,
कपड़ों से ढांप रखे थे,
मगर हम मिलते रहे- रोज नए चहरे लेकर,
रोज नए जिस्म लेकर ।
आज - तुम्हरे चहरे पर पर्दा नही,
आज- मेरा जिस्म भी बेपर्दा है,
आज- हम और तुम हैं, जैसे दो अजनबी ।
दरअसल , हम मिले ही नही थे अब तक,
देखा ही नही था कभी,
एक दूसरे का सच ।
आज मगर कितना सुन्दर है - मिलन
आज -जब मैंने चूम लिए तुम्हारे चहरे के दाग,
और आज - तुमने भी तो रख दी है,
मेरे जख्मों पर,- अपने होंठों की मरहम ।

15 टिप्‍पणियां:

Manish Kumar ने कहा…

आज मगर कितना सुन्दर है - मिलन
आज -जब मैंने चूम लिए तुम्हारे चहरे के दाग,
और आज - तुमने भी तो रख दी है,
मेरे जख्मों पर,- अपने होंठों की मरहम ।

बहुत अच्छे भाव!

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

संजीव जी,बहुत सुन्दर!बढिया रचना है।बधाई।

आज - तुम्हरे चहरे पर पर्दा नही,
आज- मेरा जिस्म भी बेपर्दा है,
आज- हम और तुम हैं, जैसे दो अजनबी ।
दरअसल , हम मिले ही नही थे अब तक,
देखा ही नही था कभी,
एक दूसरे का सच ।

Hirendra Jha ने कहा…

milan ishi ko kahte hain sanjeev sir.....qismat waale hain ap...

Divine India ने कहा…

सांकेतिक स्वर में गहरा सच…। सुंदर रचना…॥

सुनीता शानू ने कहा…

बहुत सुंदर तरीके से कहा आपने अच्छा लगा पढ़कर...

शानू

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

अच्छी रचना है. बधाई.

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन रचना. बधाई.

Shastri JC Philip ने कहा…

जीवन के एक यथार्थ को, कई लोगों के एक अनुभव को, एक विशेष कोण से आपने प्रस्तुत किया है.

Anita kumar ने कहा…

Sajeev ji badhaai
badhe saleeke se bahut kutch keh gaye aap...bahut hi sunder rahaa hoga yeh ahsaas

Keerti Vaidya ने कहा…

aap bhut jyada umda likhte hai..mujhe apse seekne ko milta hai.....

गिरिराज जोशी ने कहा…

बेहतरीन रचना. बधाई.

विजेंद्र एस विज ने कहा…

वाह..बढिया..बहुत बढिया..सुन्दर अभिव्य्क्ति के साथ एक बेहतरीत ताजा रचना..बधाई.

Unknown ने कहा…

यही मिलन है । बाकी सब भ्रम है।
बहुत सुंदर।

Yatish Jain ने कहा…

बहुत ही बढिया चित्रण

पारुल "पुखराज" ने कहा…

bahut khuub....