कभी सोचता हूं,
कोई फैसला कर लूँ,
कब तलक यूँ ही भटकूंगा,
बस्तियों और सहराओं के बीच,
मगर क्या करूँ,
कि मुझे तो प्यार,
काँटों से भी है, फूलों से भी,
साहिल से भी, सागर से भी,
काश कभी ऐसा होता,
कि आग से बर्फ,
गले मिले,
और मैं दोनों के बीच,
कभी सुलगूं,
कभी पिघलूं...
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