बंद कमरों में लिए जाते हैं,
बड़े बड़े फैसले,
जिनकी बुनियाद होती है,
चंद कागजी फाईलें,
चंद पेचीदा आंकडे,
मगर इन फाईलों में,
लिखी इबारत,
किसी झूठी कलम की,
लिखावट हो सकती है,
इन आंकड़ों की गिनती,
किसी गलत तस्वीर का,
बयां हो सकती है,
ऐसे में ये फैसले,
बेमानी, बेबुनियादी,
ठहराए जायेंगें,
उन फैसलों पर,
कोई ईमारत नहीं बनती,
जो सच की जमीं से,
परे होते हैं...
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