किनारे दूर हैं,
सहारे दूर हैं,
चलो मँझदार को ही हम,
अब जिंदगी बना लें,
ग़मों के भँवर में ही आओ,
आनंद की मौज पा लें...
अब डर नहीं,
तूफ़ान आये,
जितना भी क चाहे,
हमें आजमाए,
ना राह अपनी, न मंजिलें हैं,
न दूरियां हैं, न फासले हैं,
न दर्द खोने का कुछ,
न चैन पाने का,
न गर्व सर उठाने का,
न शर्म सर झुकाने की,
सब बेड़ियों को,
सब दायरों को,
हम तोड़ दें आओ,
नज़दीक आओ,
मेरे साथ गो,
रोना नहीं है,
बस मुस्कुराओ,
कोई लम्हा न व्यर्थ गंवाओ,
साज़ उठाओ, गो, झूम जाओ,
सब बंद दरों को,
और खिड़कियों को,
हम खोले, आओ...
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