यहाँ कद्र नहीं है जहीनों की,
यहाँ करते हैं राज निपट गँवार,
क्या ले के जिए दुल्हन बोलो,
सब लूट गए बेईमान कहार,
नाचे पतझर हर आँगन में,
चंद लोगों की मेहमान बहार
जो बैठे हैं कुर्सी पे चढ़े,
अपने ही लिए अरमान सँवार,
वो क्या जाने हर रोज यहाँ,
भूखे भी मरे इंसान हज़ार
पर किसको जगाऊं, मुर्दा हैं सभी,
ये शहर मेरा, शमशान है यार...
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