रफ़्तार के कदम,
तेज़ी से बढ़ रहे थे,
कमज़ोर बुनियादों पर
बनी जा रही थी,
दिन ब दिन,
नयी मंजिलें इमारतों की,
आधे धुले, आधी इस्त्री वाले,
बिन तह के कपडे, ढेर के ढेर,
सजे जा रहे थे,
मैं मैली कमीज़ सा,
कोने में पड़ा रह गयी
लोगों ने नयी राहें खोज ली थी,
जिन्हें शोर्टकट कहा गया,
मैं न जाने क्यों, उस तरफ नहीं मुड़ा,
नतीजे कुछ और निकले,
मैं रेस में पिछड़ गे -
वो खोखली कमियाबी पैदा नहीं कर सका,
जो मेरा वक्त मेरा मौहौल,
मुझसे माँग रहा था....
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