मैं हूँ खामोश,
मेरे अलफ़ाज़ सुनो,
मेरे साँसों में गूंजती,
अपने पायल की झंकार सुनो,
मैं हूँ मदहोश,
मेरे जज़्बात सुनो,
मेरी आँखों में रचे ख्वाबों का,
कौन है फनकार सुनो,
अब तो परछाईयाँ भी,
सांस लेती है मेरे कमरे में,
हर शय पे नयी ताजगी नज़र आती है,
कांच के झरोखों पर जमी,
बारिश की बूंदों की तरह,
जेहन का कोना कोना भी,
तुमसे है आबाद सुनो,
बस इन हालतों पर नहीं,
फिर भी है,
अब भी कुछ इख्तियार अपनी आँखों पर,
देख लेता हूँ कभी जो,
महकती हुई इन कलियों की सूरत,
बूझ लेता हूँ तुम्हारे दिल की भी,
हर बात सुनो...
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