बात बचपन की कुछ और थी दोस्तों,
अब वो होने लगे हैं जवाँ दोस्तों,
क्यों अचानक वो इतने हसीं हो गए,
उनकी तारीफ है हर जुबाँ दोस्तों,
वो न अपनों से रखेंगें पर्दा कभी,
अब तलक था हमें ये गुमाँ दोस्तों,
ये समझ की दीवारें है जालिम बड़ी,
कितने सच्चे थे जब थे नादाँ दोस्तों,
कल के साथी उन्हें हमसे प्यारे हुए,
दूर है अब तो उनका मकाँ दोस्तों
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