हे समय के रथ के सारथी,
ये किस काल भूमि पर ला रोका है तूने हमें,
यहाँ तो अहंकार चिंघाड़ रहा है,
और प्रेम स्वार्थ की बलि पर टंगा है,
अँधेरे फन फैला रहे हैं,
घायल रूहें तड़प रही हैं,
रक्तरंजित धरती पर,
विनाश ठहाके लगा रहा है,
आकाश पर शैतान अट्टहास कर रहा है,
हे समय के रथ के सारथी,
सुन, युद्ध के नगाड़े बज रहे हैं,
और तेरे सुर खामोश हैं,
इंसानियत चीत्कार कर रही है,
इससे पहले कि ये क़यामत बरपे,
तू रथ के पहियों को मोड,
किसी सतयुगी साम्राज्य की और,
जहाँ जीवन सांस ले सके,
हे समय के रथ के सारथी,
और कितने युग दूर है -वह युग
2 टिप्पणियां:
इतनी गहरी बात बहुत जबरदस्त लाजवाब
गहन भाव ... रथ के पहिये काश मोड़ दिए जाते .
एक टिप्पणी भेजें