जन्मों की प्यास, आँखों में,
जमी है क्यों नहीं पिघलती है,
रह जाती है क्यों उमड़ घुमड़ कर,
क्यों नहीं खुल कर बरसती है
टूट कर किनारों से बहती है,
एक लहर सागर से मिलने को तरसती है,
एक कोहे नूर सा चमकता है, दूर आँखों से,
एक लौ है जो टिमटिमा रही है, अंधेरों में,
क्यों इसे रौशनी सताती है...
1 टिप्पणी:
So nice
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