टूटने को है संवेदनाओं का बाँध,
इसे मत रोको, ढह जाने दो,
संचित सभी व्यथाओं को,
चिंताओं और कुंठाओं को,
टूटी सभी आशाओं को,
पीड़ा के प्रवाहों को,
उन्मुक्त हो अब बह जाने दो,
निरंतर उठते विचारों को,
सपनों और विकारों को,
अभिलाषाओं के मनुहारों को,
इच्छाओं के प्रहारों को,
प्रत्यक्ष हो सब, कह जाने दो ,
मन की हर अभिव्यक्ति को शब्दों मे ढल जाने दो,
कोरे हैं ये रूप इन्हें, कोरे ही रह जाने दो।
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