इस पहाड़ से गिरते झरने की निर्मलता,
इन शाखों से झनती धूप का चंचलपन,
इन खिले खिले फूलों की सुंदरता,
इन पेड़ों से लिपटी बेलों का समर्पण,
इन जगली जानवरों सी बर्बरता,
इस सूखी गीली मिटटी सी उर्वरता,
इन नदियों सी अल्हड़ता,
इन हवाओं सा आवारापन,
मेरी रूह की तह में मिल जायेंगें तुम्हें कहीं,
मैं कुदरत में समाया हूँ, या कुदरत कहीं,
मुझमें समाई है....
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