उदासी की नर्म दस्तक ,
होती है दिल पे हर शाम ,
और गम की गहरी परछाईयाँ ,
तनहाईयों का हाथ थामे ,
चली आती है -
किसी की भीगी याद ,
आखों मे आती है ,
अश्कों मे बिखर जाती है ।
दर्द की कलियाँ
समेट लेटा हूँ मैं ,
अश्कों के मोती
सहेज के रख लेता हूँ मैं ...
जाने कब वो लौट आये .....
वो ठंडी चुभन ,
वो भीनी खुश्बू ,
अधखुली धुली पलकों का
नर्म नशीला जादू ,
तस्सवुर की सुर्ख किरणें ,
चन्द लम्हों को जैसे ,
डूबते हुए सूरज में समां जाती है ,
शाम के बुझते दीयों में ,
एक चमक सी उभर आती है ,
टूटे हुए लम्हे बटोर लेता हूँ मैं ,
बुझती हुई चमक बचा लेता हूँ मैं ,
जाने कब वो लौट आये ......
सरफिरा है वक़्त,
कभी कभी लौट भी आता है ,
दोहराने - आपने आप को ।
5 टिप्पणियां:
दर्द की कलियाँ
समेट लेटा हूँ मैं ,
अश्कों के मोती
सहेज के रख लेता हूँ मैं ...
इन शब्दो मे आपकी व्यथा झलकती है। लेकिन जीवन में दुखः को ही नही सुख को भी सहेजने की कौशिश करें।
भावों का सुंदर शब्द चित्रण किया है, बधाई!!
सचमुच "सिरफिरा है वक़्त"!!
सुंदर!!
बहुत सुन्दर रचना । वक्त का इन्तज़ार तो सब करते हैं । विशेष रूप से अच्छे वक्त का ।
किन्तु कभी उसे आते नहीं देखा । काश ऐसा हो सकता । मन की कशिश को बहुत
सुन्दर रूप में व्यक्त किया है । मेरी दुआ है कि ये सिरफिरा सचमुच में लौट आए ।
सस्नेह
सरफिरा है वक़्त,
कभी कभी लौट भी आता है
सच?!
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