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4.11.13

अदा के जेवर भी, कातिलाना तेवर भी

मैं तेरे लिए कुछ ज्यादा ही सेक्सी हूँ....” कुछ ऐसे ही तीखे अंदाज़ से वो न्योता देती है अपने माशूक को, मुँह से नुकीली गालियाँ निकालते समय उसकी जुबान बिलकुल भी नहीं लडखडाती, वो मर्द की मात्र परछाई भर नहीं बल्कि उसके टक्कर में खड़ी एक चुनौती है जो किसी भी मोड पर अपने फायदे के लिए उसे पटखनी देने से भी नहीं चूकती. कुछ ऐसी ही है आज के बॉलीवुड में तारिकाओं के लिए लिखे जा रहे किरदार. कहीं न कहीं आज का पुरुष भी अपने समक्ष इस नई ऊर्जा और आत्मविश्वास से भरी ‘आधी आबादी’ की उपस्तिथि को स्वीकार कर चुका है. तभी इन बोल्ड किरदारों को बेहद सहज स्वीकृति भी प्राप्त हो रही है. 

 ९० के दशक में बनी एक सफल फिल्म थी दामिनी, जिसमें नायिका सच का साथ देते हुए अपने अपनों के खिलाफ एक मुश्किल जंग लड़ती है जहाँ उसे साथ मिलता है गोविन्द नाम के एक वकील का. फिल्म में नायिका दामिनी का किरदार सशक्त तो था पर ऐसा लगा कि अभी भी नायिका नायक पर कुछ निर्भर सी है. अब आज के दौर पर आते हैं, फिल्म नो वन किल्ल्ड जसिका में जसिका की मदद के लिए सामने आती है बेबाक और निर्भीक मीरा. मीरा के किरदार को रानी मुखर्जी ने उसी सशक्तता से परदे पर साकार किया जिस खूबी से गोविन्द को सन्नी देओल ने किया था. 

  
बोल्ड किरदारों से भी परहेज नहीं
 ८० के दौर में सी ग्रेड फिल्मों में ग्लैमरस भूमिकाओं में नज़र आई सिल्क स्मिता का जीवन शायद बहुत आनंद भरा नहीं था, पर जब विध्या बालन उनके जीवन से प्रेरित फिल्म द डर्टी पिक्चर में सिल्क स्मिता के रोल में परदे पर अवतरित हुई तो उनके किरदारीकरण में कहीं कोई असहजता, कहीं कोई संशय नहीं बल्कि जीवन के प्रति पूर्ण स्वीकृति और सहजता नज़र आती है. वो अपनी चुनी हुई राहों को लेकर शर्मिंदा बिलकुल भी नहीं है, बल्कि कहीं कहीं उनकी रहस्यमयी मुस्कान में मर्दों की सबसे बड़ी कमजोरी का उपहास भी झलकता दिखा. 

 मोहन सिक्का की कहानी द रेलवे आंटी पर आधारित और अजय बहल निर्देशित फिल्म बी ए पास में रेलवे आंटी सारिका की बोल्ड भूमिका में शिल्पा शुक्ला बेहद अन्तरंग दृश्यों में भी कहीं असहज नहीं प्रतीत होती. इससे पहले शिल्पा चक दे इंडिया में भी अपने अभिनय का सिक्का जमा चुकी है. उधर रेलवे आंटी की भूमिका के लिए निर्देशक की पहली पसंद रही रिचा चढ्ढा ने पुरुष प्रधान अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में नगमा के किरदार में अपनी ऐसी छाप छोड़ी जिसे दर्शक लंबे समय तक याद रखेंगें. तिग्मांशु धुलिया की साहेब बीवी और गैंगस्टर भले ही गुरुदत्त -मीना कुमारी की साहेब बीवी और गुलाम से प्रेरित हो पर यहाँ बीबी बनी माहीं गिल उस दौर की छोटी बहु से मीलों अलग है. 

कभी नायिका कभी खलनायिका 
नए दौर की ये सुंदरियाँ परदे पर बस एक वास्तविक औरत दिखना चाहती हैं. न देवी न पतिता, बल्कि एक स्त्री मात्र जो सुविधानुसार अच्छी या बुरी हो सकती है. वो नायिका –खलनायिका के तय मापदंडों से इतर नज़र आती है. वो बेड़ियों से मुक्त, आज़ाद ख्याल और नए समाज के मूल्यों के प्रति पूरी तरह वाकिफ और सजग दिखाई देती है. पर फिर भी ये परिवर्तन अभी अपनी आरंभिक प्रक्रिया में ही है. फिल्म बोम्बे टौकीस में नायिका को अपने सहकर्मी के समलिंगी होने को लेकर तनिक भी अचंभा नहीं होता, हाँ मगर अपने पति का उसी समलिंगी सहकर्मी के प्रति आकर्षण वो बर्दाश्त नहीं कर पाती. इसी तरह फिल्म रोक्क्स्टार में नायिका नायक से ठर्रा पीने और ‘गंदे मंदे’ लोगों के बीच बैठ ‘जंगली जवानी’ देखने के अपने ‘रहस्य विकारों’ का खुलासा तो बेबाकी से करती है पर शादी से पहले ‘चुम्बन’ को लेकर असमंजस में है. ओढ़े हुए संस्कार और अपने मूल स्वभाव का यही अंतरद्वंद ही आखिर उसके लिए घातक साबित होता है. 

 मात्र नाच गाना या फिल्म को जरूरी ग्लैमर देना ही नहीं आज की नायिकाएं पुरुष प्रधान कहानियों में भी अपने किरदार को बेहद सशक्त रूप से पेश कर रहीं हैं. यहाँ तक कि उन्हें बिना मेकअप परदे पर दिखने से भी परहेज नहीं है. फिल्म तलाश में नायक और नायिका अपने एकलौते बेटे की अकाल मृत्यु के दुःख से झूझ रहे हैं, यहाँ नायक को लगता है कि नायिका कमजोर है और उसे इलाज़ की आवश्यकता है वहीँ वास्तविकता इसके बिलकुल उलट होती है. फिल्म में दिखाया गया है कि जहाँ नायक अपने अवसादों में गहराता जाता है वहीँ नायिका अपने दुःख को सामना अधिक बहादुरी और मानसिक परिपक्वता से करती है. 

 फिल्म राँझना में नायिका अपने फैसलों पर अडिग रहती है. अक्सर जहाँ गुजरे दौर की फिल्मों में अपने लिए जान देने को तैयार प्रेमी को अपनाने में नायिका तनिक भी समय नहीं गंवाती थी वहीँ यहाँ वो न सिर्फ अपने बचपन के प्रेमी को स्वीकार करने से इनकार करती है वरन उसे समझा भी देती है कि वो ऐसे क्यों कर रही है. अबला नहीं सबला मधुर भंडारकर निर्देशित फैशन हो या हिरोइन, नायिकाएं यहाँ अपने अस्तित्व को बचाए रखने के खातिर किसी भी हद तक जाने से नहीं झिझकती. वो मर्दों की दुनिया में कहीं अलग थलग नहीं पड़ती बल्कि पूरे आत्मविश्वास के साथ उनकी आँखों में ऑंखें डाल अपने वजूद की उपस्तिथि दर्ज कराती नज़र आती है. जहाँ फिल्म कहानी में नायिका अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए गर्भवती महिला का रूप धारण करती है वहीँ राज ३ की नायिका अपने ढलते कैरियर को बचाने के लिए काले जादू का सहारा लेती है. 

 इश्किया की विध्या बालन हो, या फिर तारा की रेखा राणा, मटरू की बिजली का मंडोला की शबाना हो या औरेंगजेब की अमृता सिंह, एक थी डायन की हुमा हो या फिर अइय्या की रानी मुखर्जी, कोकटेल की दीपिका पादुकोन हो या फिर जिस्म २ की सनी लियोनि, आज की नायिकाएं हर चुनौती के लिए एकदम तैयार नज़र आती हैं. वो अपने लिए बेहतर भूमिकाएं चाहती है और ऐसे किरदार जिनके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाए.

  दर्शक इंतज़ार कर सकते हैं – 
 रज्जो का, जहाँ कंगना रानौत एक बाजारू स्त्री की भूमिका में दिखेंगीं, कंगना इस किरदार को अपने दिल के बेहद करीब मानती हैं. वैसे इस फिल्म से पहले ही दर्शक उन्हें क्रिश ३ में एक नितांत नकारात्मक भूमिका में देखेंगें. 




 डेढ़ इश्किया का, जहाँ वापसी करेंगीं माधुरी दीक्षित नसीरुद्दीन शाह और अरशद वारसी के साथ. फिल्म अपने पहले संस्करण की ही तरह काफी बोल्ड होगी ऐसी उम्मीद है. 


रागिनी एम् एम् एस २ का, जहाँ बालाजी फिल्म्स ने सन्नी लिओनि को १ करोड रूपए के पारिश्रमिक पर फिल्म से जोड़ा है. भारतीय मूल की सन्नी हॉलीवुड की सबसे मशहूर पोर्न स्टार्स में से एक है.






इनका मानना है... 

 महेश भट्ट – “मेरी फिल्मों में हमेशा ही स्त्री किरदार अपनी किस्मत की राहें खुद चुनती आई हैं. आज की नारी अपना जीवन बिना पुरुष पर निर्भर हुए भी गरिमा के साथ जीने में सक्षम है. मेरी फ़िल्में इसी नारी को चित्रित करती है” 


 एकता कपूर – “सेक्स अब कोई वर्जित चीज़ नहीं रह गयी है. मेरी फिल्म ‘लव सेक्स और धोखा’ आज के समाज का आईना है” 


 किरण राव – “मैं नारी प्रधान फिल्मों में विश्वास नहीं रखती, बल्कि मानती हूँ कि हमारी फिल्मों में अभिनेत्रियों को चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं दी जानी चाहिए. मैं अपनी फिल्मों में में स्त्री के बहुरंगी रूप साकार करना चाहूंगी.”

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