बंद आँखों एक अँधेरे पर्दों पर,
सायों को चला रहा है कौन,
दृश्य पर दृश्य बदलते हैं,
अनदेखे, अनजाने, चेहरे बेचेहरे,
तस्वीरें रोज अनोखी,
बनाता है कौन,
ज़ेहन की इन पगडंडियों पर,
ये किसके नक़्शे कदम हैं,
मेरे ह्रदय की बंजर जमीं पर,
ये किसकी कल्पना का अंकुर फूटा है,
नसों में दौड रहा है ये प्यार किसका,
मेरे रोम रोम से आतु ये किसकी महक है,
जानता हूँ, फिर भी हूँ तलबगार,
उसे जानने को,
समझा हूँ, फिर भी हूँ बेकरार,
मेरा दर्द तुम न समझ पाओ,
तो दोष तुम्हारी खुदी का है,
मगर मुझको पता है,
हर शय में जो अक्स है - उसी का है
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