एक ख़ामोशी कभी बहती है,
सूनी अकेली रातो में,
आँखों से जार जार,
एक सरगोशी कभी कहती है,
कानों में बार बार,
आएगी वो सुबह भी,
जिसका है इन्तेज़ार.
जब भी उदासियों के भंवर सीने में घुलते हैं,
परछाईयाँ ग़मों की जब आँखों में चलती है,
पलकों पर जुगनू के दिए,
आँखों में उम्मीदें लिए,
जिंदगी मुझे ख्वाबों में मिलती है,
टूटे हुए सपनों के टुकड़े
जब दिल में चुभते हैं,
मंजिलों का लंबा सफर,
जब तनहा गुजरता है,
कोई सुहारी धुप बनकर,
ख्वाबों की शाखों से छनकर,
चुपके से मेरी रूह में उतरता है...
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