जिंदगी जैसे थम सी गयी है,
साँस सीने में ज़म सी गयी है,
एक नदी सी थी वो शरीर बदन,
अब जो सहराओं में रम सी गयी है,
जाने क्या जिक्र था तेरी महफ़िल में,
आँख हर शख्स की नम सी गयी है,
जब नजारों में सौ आसमां भी थे,
क्यों कफस पर नज़र जम सी गयी है
तेरे सदमों से हूँ अब तक बेज़ार,
बे-खयाली भी कुछ कम सी गयी है
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