चिकनी रेट पर किसी के पैर पड़े थे,
किसी की खुशबू थी हवाओं में,
धुल के उड़ते गुबार जाने वालों का पता बता रहे थे...
कहीं दूर है वो पहाड़ों की जमीं,
कुछ विश्वास पलते हैं जहाँ,
सजदे में झुकते हैं बेशुमार,
सूनी अँधेरी आँखों में, चिराग जलते हैं वहाँ,
कोई नन्हें नन्हें हाथों से रूह को छूता है,
प्यासे सूखे होंठों पे कोई रखता है आबो हयात,
दुनिया-ए दिल- के सहराओं से परे,
कहीं एक फिरदौस भी है
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