मीठा सा दर्द है ,
मीठी चुभन है ,
जागें हैं सपने ,
सोये नयन है,
धड़कन है गुमसुम ,
बेसुध ये मन है,
ये प्यार है या " प्यार सा " कुछ और है
हल्का नशा है ,
बहका खुमार है,
महकी हवा है ,
हर सू बहार है,
बैचैनियाँ है,
फिर भी करार है,
ये प्यार है या " प्यार सा " कुछ और है
कैसी कसक
ये कैसी ख़लिश है,
किसकी तड़प
किसकी कशिश है,
क्यों है जलन ये ,
क्यों ये तपिश है,
ये प्यार है या " प्यार सा " कुछ और है
बजते है सुर अब ,
खामोशियों में,
मेले सजे हैं,
तनहाइयों में,
दिल को सकूं है
बेजारियों में,
ये प्यार है या " प्यार सा " कुछ और है
कानों मे मेरे
ये किसकी सदा है,
जब से सुनी है ,
दिल बेजुबा हैं,
जा में इबादत ,
लब पे दुआ है,
ये प्यार है या " प्यार सा " कुछ और है
न खुद से शिकवा,
न जग से गिला है,
दिल को यकीं ,
अब हो चला है,
कुछ दिन से जारी
जो ये सिलसिला है,
ये प्यार है , प्यार है, कुछ और नही बस प्यार है
बेख्वाब आँखों की बस्ती है -तुम हो ,
बिन मय के छायी ये मस्ती है- तुम हो ,
कुछ भी नही मेरी हस्ती है- तुम हो।
हाँ ये प्यार है , प्यार है, कुछ और नही बस प्यार है ।
5 टिप्पणियां:
बेख्वाब आँखों की बस्ती है -तुम हो ,
बिन मय के छायी ये मस्ती है- तुम हो ,
कुछ भी नही मेरी हस्ती है- तुम हो।
हाँ ये प्यार है , प्यार है, कुछ और नही बस प्यार है ।
---बहुत सुन्दर. आनन्द आ गया, वाह!!
सजीव जी आप भी इस चक्कर में लगता है फ़स ही गये…हाँ भई ये प्यार ही है…
बहुत अच्छा लिखा है…
शानू
सजीव जी
निश्च्य यह प्यार ही है और फ्लू से भी ज्यादा जल्दी फैलता है..
सुन्दर व रोचक रचना के लिये बधायी
अब जब सारी की सारी परिभाषा आपने खुद ही बता दी तो यह भी बता दो किसके लिए जल रहे हो… :)
इतना सूंदर लिखा है प्रेम और प्यार को नाप कर की हम कहें से वेहतर है कि आप ही रच दें।
बेहद पसंद आई।
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