बलवंत सिंह जी मुझे हमेशा याद रहेंगे। अपने एक मित्र के साथ एक वृत्तचित्र के फिल्माकन के सिलसिले मे जाना हुआ था , जमुना पार स्थित उस वृधाश्रम में जहाँ मिले थे बलवंत जी - पूरी जिन्दगी उन्होने बिताई अपने दोनों बच्चों को इस लायक बनाने में ताकी वो अपने पैरों पर खडे हो सकें , बिना किसी के सहारे के, बच्चे जब बडे हुए तो बस गए सात समुन्दर पार जाके, और छोड गए अपने बूढे माँ बाप को इस व्रदाश्रम में , अपने बुदापे से जूझने को .... दो साल पहले बलवंत सिंह जी की पत्नी भी उन्हें छोड कर चली गयी हमेशा के लिए इस संसार को अलविदा कहकर, अब बलवंत सिंह बिल्कुल अकेले हैं.... शायद उन्ही के दिल की तड़प है मेरी कलम से निकली इन पक्तियों में ....
ये डूबता सूरज ,
ये सूखे पत्ते ,
मुझे एहसास दिलाते है पल पल,
कि मैं भी
डूब रहा हूँ,
कि मैं भी,
सूख रहा हूँ,
ये झुका बदन , ये सूखापन ,
मुझे अच्छा नही लगता,
ये बुझा मन , ये सूनापन ,
मुझे अच्छा नही लगता ।
खाली खाली कमरे ,
लम्हे बीते गुजरे ,
चश्मे के शीशों से झांकते,
चेहरे की झुर्रीयों से कांपते ,
ये चेहरा, ये दर्पण,
मुझे अच्छा नही लगता,
ये कमरा, ये आंगन,
मुझे अच्छा नही लगता ।
7 टिप्पणियां:
जीवनसाथी के विछोह के बाद एकाकीपन का मार्मिक शब्द चित्रण.
एक दर्द का एहसास दे गई है आप की रचना।बहुत सुन्दर चित्रण किया है।
अच्छी कविता है, दिल को छू गयी
yunus
दर्द को गहरा स्पर्श करती है यह रचना…।बहुत सुंदर!!!
लम्हे बीते गुजरे ,
चश्मे के शीशों से झांकते,
अच्छी अभिव्यक्ति है.
सच है सजीव जी,
कल हमेश परेशान करता है चाहे बीत गया हो या आना हो।
पर जितनी तडप से आपने लिखा है, लगता है व्यक्तिगत आप उस तडप को महसूस कर रहे हैं।
'खबरी'
9811852336
बहुत सुन्दर लिखा है । यथार्थ का अहसास हुआ पढ़कर । सचमुच
उम्र के इस दौर में ऐसा ही लगता है । मन की यथास्थिति के लिए
इससे अच्छा कुछ शायद ही कहा जाए । लिखते रहिए ।
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