कितने , सपने कितने संजो रखे है इन आंखों में मैंने । कोई गीत बन कर आपके लबों पर आऊं , किसी कविता की तरह कभी आपकी आँखों मे झान्कू , कभी कोई ग़ज़ल बन कर आपके दिल मे उतर जाऊ , कभी तो कोई नगमा बनूँ और आपके रूबरू बैठ कर आपकी ही दास्तां कहूं , मगर सपने तो फिर सपने हैं , कुछ सच हो जाते हैं कभी तो कुछ यूं ही दफ़न हो जाते हैं । फिर भी जब तक सांस है आस है , उमीदों कि डोर थामे कोशिशें जारी रखता ही है आदमी , ऎसी ही एक कोशिश कि शुरुआत कर रहा हूँ मैं यहाँ , साथ चलियेगा मेरे , नगमों के इस सफ़र मे , कौन जाने युहीं चलते चलते कभी कोई सपना सच भी हो जाये ...
सूरज भी चल दिया अपनी किरणें समेट कर
पंछी भी उड़ चले नीले गगन को छोड़कर
आसमान से उंची उड़ान मेरे दिल की
मंज़िल होगी मेरी जाने किस मोड़ पर .....
है खुदी मे ही खुदाई मुझको है इतनी खबर
पाँव है धरती पे मेरे और सितारों पर नज़र
हो लगन सची अगर तो कुछ भी मुश्किल नही
जो ना हासिल हो सके ऐसी कोई मंज़िल नही
3 टिप्पणियां:
संजीव:
हिन्दी ब्लौग जगत में इस आशावादी और सार्थक कविता के साथ तुम्हारा स्वागत है ।
ये पंक्तियां विशेष रूप से अच्छी लगीं :
>हो लगन सची अगर तो कुछ भी मुश्किल नही
>जो ना हासिल हो सके ऐसी कोई मंज़िल नही
हर मंज़िल तुम्हारे स्वागत में बांहें फ़ैलाये मिले इसी शुभकामना के साथ ।
बहुत स्वागत है, हिन्दी चिट्ठाजगत में.
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और हाँ, रचना बहुत पसंद आई. लिखते रहें. बधाई स्विकारें. नारद पर पंजीकरण में अगर कोई दिक्कत आये, तो सूचित करें.
-समीर लाल
Swagat,
prarambh ko aarambh ka
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