सिंहासन सजाओ,
विजय गीत गाओ,
कि एक बार फिर बिठा दिया है,
जनता जनार्धन ने,
उसे तख्ते-ताउस पर,
जो सरे-आम कहता है कि -
"हाँ मैंने हत्याएं करवाई हैं,
बिगाड़ लो क्या बिगाड़ सकते हो मेरा",
आज ताज पोशी है उसकी,
जो भरे-बाज़ार में सीना ठोक कर
कहता है -
हाँ मैंने घोम्पी है
हामलाओं के पेट में तलवारें,
हाँ मैंने कलम किये हैं,
मासूमों के धड़ से सर,
हलाल किये मजहब के नाम कर कितने,
नफरत के तंदूर में मैंने,
सेंकी है राजनीति की रोटियां,
भेड़चाल के इस देश में अब,
खूब फैलेगी "मुखौटो" की जादूगरी,
खडे हो जायेंगे जाने कितने,
कुर्तानुमा कट शर्ट पहने,
हिटलर नुमा नेता,
अनाप शनाप चुनावी बयानों को,
राजनीती का साहित्य माना जाएगा अब,
एन्कोउन्टर विशेषज्ञ पूजे जायेंगे,
सिंहासन सजाओ,
विजय गीत गाओ,
लोकतंत्र के अखाडे का,
ये खेल भी क्लासिक है।
धर्मनिरपेक्ष भारत के लिए,
आज का दिन एतिहासिक है।
11 टिप्पणियां:
लोकतंत्र का अच्छा मजाक उड़ाया है.
सही कहा संजय भाई, वामपंथियों द्वारा की हत्याएं, हत्याएं नहीं हैं, दिग्विजयसिंह द्वारा बिजली-पानी-सड़क को बरबाद करना यानी सेक्यूलरिज्म है, तरुण गोगोई द्वारा बांग्लादेशियों को पनाह देना राष्ट्रीयता है, जो कुछ गलत है सिर्फ़ मोदी है... मतपेटियों से तमाचा खाने के बाद भी सुर नहीं बदल रहे...
हत्यारें तो मोदी भी हैं और बंगाल के ज्योति बसु भी। अंतर बस इतना है कि एक ने हजारों की तादाद में लोगों को मरवाया तो दूसरे ने थोड़े कम
आपकी नजर से 49 प्रतिशत गुजरात की जनता गलत साबित होती है आपकी नजर को सलाम ।
अरे अरे आप लोग तो आहात हो गए मेरे इशारा मात्र मोदी जी की तरफ़ ही नही था उस system को है जिसमे हमे मोदी, ज्योति बासु या बाल ठाकरे जैसे नेताओं का कोई विकल्प प्रादन नही करता मैं किसी पार्टी विशेष का हिमायती बिल्कुल नही हूँ, हाँ आश्चर्य अवश्य होता है जब कोई इस कदर बर्बर बातों का प्रचार कर के भी विजय हार पहनता है वैसे मोदी की जीत से कोंग्रेस को जो धक्का पहुँचा था वो भी जरूरी था, जनता के फैसले को नमन है और आप सब के विचारों को भी, चूँकि लोकतंत्र है तो अपनी बात कहने का हक सब को है, जो मुझे महसूस हुआ वही लिखा..... कोई बात बुरी लगी हो तो माफ़ी चाहूँगा
आप कहना चाहते हैं कि गुजरात की जनता बर्बर है। या करोड़ों गुजरातियों में बुद्धि नहीं है और वे उचित अनुचित का विचार करने में सक्षम नहीं हैं। गुजरात से सैंकड़ों मील दूर बैठे आपको पता है कि वहां कौन गलत है और कौन सही। जिन लोगों ने उन दंगों को झेला है उन्हें उचित अनुचित का ज्ञान नहीं है और दूर बैठ कर आप जैसे मुट्ठी भर लोग सुनी सुनाई बातों के आधार पर निर्णय करेंगे। कोई किसी को पत्थर मार कर सिर फोड़ दे और आप कहते फिरेंगे कि फूल बरसाए थे, तथा घायल को भी मान लेना चाहिये। वाह क्या हठ है।
वह दंगा एकतरफा नहीं था और ना ही मोदी का उसमें कोई योगदान था। दोनो पक्षों के लोग मारे गए थे। उन दंगों में मुसलमान रक्षात्मक नहीं थे बल्कि आक्रामक थे इसीलिये दंगा इतने लम्बे समय तक चला। और यह टिप्पणी केवल आपके लिये नहीं है, उन सभी लोगों के लिये है जो या तो गलतफहमी के शिकार हैं या पूर्वाग्रहवश ऐसी बाते कहते हैं। मैंने 1984 के सिख विरोधी दंगों को दिल्ली में अपनी आंखों से देखा है तथा गुजरात के दंगों को भी देखा है। वास्तविकता जो देखी है तथा बाद में अफवाहें व मीडिया द्वारा प्रसारित जो सूचनाएं देखी सुनी हैं वे हैरान कर देती हैं।
मजबूत कविता के लिए बधाइयां, और टिप्पणियों के लिए भी।
और माफी की जरूरत कहाँ थी। आहों का असर होता उन पर, तो जस्टीफाई करने को औरों का उदाहरण न देते।
दिनेश जी आपके बारे में जानकर अच्छा लगा, आपकी जानकारियों के लिए धन्येवाद, आपकी हर बात मानी जा सकती है पर मोदी को इस तरह से clean chit देना कुछ हजम नही हुआ, इसे आपकी मोदी भक्ति कही जा सकती है, और कुछ नही.... खैर इस बहस को आगे ले जाने का कोई फायदा नही, चाहे कोई कुछ भी कहे, खुले आम नफरत के बीज बोने वाले ऐसे हिटलर रुपी नेताओं के ख़िलाफ़ मेरी कलम लिखती रहेगी, जनता की बात कर आप बात घुमा रहे हैं, जनता का फैसला विकास है, मोदी के शासनकाल में ही गुजरात top ३ राज्यों में आया है विकास के मामले में, पर जनता अमन भी चाहती है, मैं हर उस नेता का पतन चाहता हूँ जो अलगाववाद के नाम पर राजनीति की रोटियां सेंकते हैं, जो किसी ख़ास समुदाय की हत्या और बलात्कार को जायज ठहराता है और तालियाँ बटोरता है, मोदी के इस खुले रूप को समझने के लिए मेरा गुजरात में होना जरूरी नही, सैकड़ों मील दूर बैठ कर भी भी मैं यह महसूस कर सकता हूँ...... खैर आपके प्रिये नेता के विजयी होने पर आपको भी बधाई, मैं ब्लोग्स ज्यादा नही पढ़ पता पर इस कविता के मध्यम से ही सही आपसे मिलकर खुशी हुई, श्याद आप किसी दिन मेरी बात समझ पायें
सही कहा सजीव जी. असल यह मोदी की जीत नहीं हमारी हार है. पता नही यह कैसा चरित्र बनता जा रहा है हमारे देश का और यह कैसी प्रवृति पनपती जा रही है जहाँ सामूहिक हत्याओं को भी जस्टीफाई किया जाने लगा है. यह दुखद है शर्मनाक़ है.
सशक्त रचना है सजीव जी।
मुझे समझ नहीं आ रहा कि लोग अपने पर हर मामले को क्यों ले रहे हैं। मेरे अनुसार जहाँ भी बर्बरता (ध्यान देंगे , बर्बरता और सच कहने के लिए दिखाई गई गर्मी में फर्क होता है), वहाँ अन्याय है। अब यहाँ कौन न्यायी है, कौन अन्यायी है,जनता जानती है, कहने की जरूरत नहीं।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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