ताज़ा गीत- love Story

21.8.16

नया विडियो - तू अर्श में

गीत - तू अर्श में
एल्बम - रंग तेरा
शब्द - सजीव सारथी
संगीत - गोपाल रामनाथन
स्वर - अरविन्द तिवारी


नया विडियो गीत -सैयां वे सैयां

शब्द : सजीव सारथी
संगीत : अली परवेज़ मेहदी 
स्वर : अली परवेज़ और स्वाति कानिटकर 
विडियो : अब्बास राजा

20.5.15

नया गीत - लग जा गले से

स्वीडन की मश्हूर जुड़वां गायिकाओं का संगीत बैंड वन वोईस Ylva Linda OneVoice की धुन पर लिखा गया ये गीत जिसे गाया चर्चित बॉलीवुड गायिका Urmila Varma ने और अर्रेंज किया संगीतकार Ramanathan Gopalakrishnan ने, कल इस गीत का वैश्वीक विमोचन हुआ youtube पर। निराशा से आशा को और अपने मन को मोड़ने के भाव हैं इस गीत में। आप भी सुनें और अपनी राय दें यदि पसंद आये तो प्लीज़ शेयर करें ताकि हमारी ये कोशिश अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुँच सके। 

28.1.15

आदत सी हो गयी है...

हादसों की तो अब जैसे, आदत सी हो गयी है,
रोज कुछ बुरा सुनने की, रवायत सी हो गयी है,

कॉफी टेबलों पर मुद्दों का अकाल है जो अमन है,
कोई सनसनी नहीं जेहन में, आफत सी गयी है,

तंत्र मन्त्र चमत्कारों से, पका रहा था मीडिया,
दो चार बम फटे शहर में, राहत सी हो गयी है,

रटे रटाए शब्द फिर वही आ रहे आलाकमानों से,
कड़े शब्दों में निंदा कर दी, रहमत सी हो गयी है,

हमदर्दी का अभिनय करते, घूमते दिखे चैनल वाले,
ब्रेकिंग न्यूज़ है आज धमाका, बरकत सी गयी है,

कुंठाएँ इतनी कि शराब शबाब सब हुए हैं बेअसर,
रस वीभत्स दिखे हर तरफ, नीयत सी हो गयी है,

आम लोग महफूज़ नहीं, सड़कों घरों बाजारों में भी,
हिफाज़त कैदखानों सरीखी, लज्जत सी हो गयी है, 

उफ्फ ये किस बेदिली के दौर में जी रहा है "सजीव",
दिल फटता नहीं किसी दर्द से, आदत सी हो गयी है,

2.1.15

नए साल पर -२



किसी अजाने कमरे में आँख खुली हो जैसे
किसी ने खिड़की के परदे खोल दिए हों जैसे
पर मौसम कैसा होगा कहना मुश्किल है अभी
गुनगुनी धूप होगी या सांवली घटा क्या पता
घनी धुंध है अभी बाहर
छंटेगी धीमे धीमे तो बता पाउँगा
क्या क्या छुपा है इन नज़ारों में
मेरी आँखों के लिए....
कभी सोचा है तुमने कि नया साल
हमेशा जाड़ों में ही क्यों आता है ?

3.8.14

ए दोस्त

आज भी इतने करीब है तू
कि महसूस कर सकता हूँ हर सिम्त तुझे
आज भी यकीन है मुझे
कि दौड़ा चला आएगा तू
मेरी बस एक पुकार पर
गर ठोकर खाऊंगा
तो गिरने से पहले ही तू 
मुझे थाम लेगा बढ़ कर
आज भी इतने करीब है तू कि 
वो सब बातें जो
कह नहीं पाता किसी से
बस तुझी को बता पाता हूँ मैं
कुछ मर्म जो छुपता हूँ
अक्सर खूद से भी
बस तुझी से छुपा नहीं पाता हूँ मैं

पर कभी जब हुआ करता था तू
कहीं बादलों के पार तब
मेरी आँखों में हर पल बसा करता था
बेमतलब बहते आंसुओं में
बेवजह की उन मुस्कुराहटों में
तू बरबस ही मुझे मिलता था
तब जब कुछ था ही नहीं छुपाने को
बातें कितनी होती थी बतियाने को
तब तुझे पुकारने की भी
क्या दरकार थी मुझे
जब गिरने देता था तू मुझे
चोट खाने देता था तब
जब तू कहाँ था मुझसे
रत्ती भर भी तो मुक्त्तलिफ

आ दोस्त चल लौट चलें
फिर उसी मासूमियत को
जहाँ तोतले अल्फाज़ हों
और उजले ज़ज्बात हों
जहाँ तेरी मेरी दोस्ती हो
और दरमियाँ
न दुनिया का टोना टोटका हो
न समझ की गुफाएं हों
न गुरूर का घोंसला हो.....